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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।

उत्तर -

अल्प विकास मॉडल

डॉ० गुन्नार मिर्डल का जन्म 1899 में स्वीडन में हुआ। उन्होंने 1923 में स्टॉकहोम विश्वविद्यालय से कानून व 1927 में अर्थशास्त्र में स्नातक उपाधि प्राप्त की। स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्राध्यापक रहने के उपरांत वह स्वीडन सरकार के आर्थिक सलाहकार, वाणिज्य मंत्री तथा यूरोप में यू० एस० इकोनोमिक कमीशन के सैकेट्री जनरल रहे।

1957 में वह Institute for International Economic Studies में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए। उन्हें एफ० ए० हायेक के साथ अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गुन्नार मिर्डल का लेखन कम विकसित देशों की विकास योजनाओं के नीति निर्धारण एवं समस्याओं के गहन अनुसंधान का फल है।

प्रो० मिर्डल ने विकास का पृथक् मॉडल प्रस्तुत नहीं किया संभवतः वह पहले अर्थशास्त्री रहे जिन्होंने कम विकसित देशों विशेषकर भारत की समस्याओं का विस्तार से अध्ययन किया और स्पष्ट किया कि ये देश पश्चिम के तरीकों से विकास नहीं कर सकते।

उनका प्रसिद्ध ग्रंथ एशियन ड्रामा एक दशक के अनुसंधान के उपरांत तीन भागों में 1968 में प्रकाशित हुआ जिसमें कम विकसित देशों की समस्याओं का यथार्थवादी दृष्टि से मूल्यांकन किया गया। उन्होंने कम विकसित देशों में आमूल परिवर्तन सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया।

दृष्टिकोण

कम विकसित देशों की समस्याओं को समझने तथा विकास हेतु नीति निर्धारण में मिर्डल इन देशों की यथार्थवादी संकल्पना की आवश्यकता को विशेष महत्व देते हैं यथार्थ की सच्ची संकल्पना पर पहुँचने के लिए मिर्डल के अनुसार पहली शर्त यह होनी चाहिए कि उन अवसरवादी हितों को स्पष्ट रूप से समझे जो हमारे सत्यान्वेषण को प्रभावित करती है।

पिछड़े हुए देशों के बारे में पश्चिमी अर्थशास्त्री यह मानकर चलते हैं कि इन देशों के निवासी अपनी आय व जीवन स्तर को बेहतर बनाने की संभावनाओं के बारे में आशावादी दृष्टिकोण नहीं रखते। उनमें आलसीपन व अकुशलता होती है वह वेतन के आधार पर काम के अवसर खोजते हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें किसी भी वस्तु की खास आवश्यकता नहीं है। वह निश्चित स्वभाव आत्मनिर्भरता, कार्य के बिना आराम के जीवन व जैसे-तैसे जीवनयापन करने की प्रवृत्ति से ग्रसित रहते हैं। यह भी समझा गया कि इन प्रवृत्तियों को धार्मिक मान्यताओं व रूढ़ियों से बल मिलता है।

मिर्डल का निष्कर्ष था कि कम विकसित देशों के बारे में बिना अधिक अनुसंधान किये मान्यताएं स्वीकार कर ली गयीं पर उनकी परिस्थितियों को जानने व उसमें सुधार करने पर ध्यान नहीं दिया गया। मिर्डल के अनुसार वर्तमान समय में पिछड़े देशों की समस्याओं के बारे में अनुसंधान अधिक हुए हैं। जिसके कारण निम्न हैं-

(1) उपनिवेशी व्यवस्था की समाप्ति,
(2) कम विकसित देशों में विकास की इच्छा का उत्पन्न होना,

(3) अन्तर्राष्ट्रीय तनाव विशेषकर शीत युद्ध जिसने कम विकसित देशों के भाग्य को विकसित देशों की विदेश नीति की चिंता का एक विषय बना लिया है।

मिर्डल ने स्पष्ट कहा कि कम विकसित देशों की समस्याओं के बारे विकसित देशों में जो अनुसंधान हुआ है वह पूर्वाग्रह ग्रस्त है। समृद्ध देश अपने राजनीतिक हित व आर्थिक लाभों को ध्यान में रखकर निष्कर्ष प्रदान करते हैं।

यह भी देखा गया है कि कम विकसित देशों के अध्ययन के लिए सिद्धान्तों पर आश्रित रहा जाता है उनका प्रयोग कम विकसित देशों के लिए भी कर लिया जाता है। भले ही वहाँ वह परिस्थितियां न हो जैसी विकसित देशों में विद्यमान थीं। कम विकसित देशों के बारे में अपूर्ण व एकपक्षीय आँकड़े एकत्र किए गए।

इसके आधार पर जो भी अनुभवसिद्ध अवलोकन किए गए वह उथले एवं त्रुटिपूर्ण थे। मिर्डल के अनुसार विकसित देशों की संरचना को ध्यान में रखकर तैयार किए गए सिद्धान्त कम विकसित देशों में व्यावहारिक नहीं बन पाते क्योंकि इन देशों की परिस्थितियों तथा संस्थाओं का स्वरूप भिन्न होता है।

कम विकसित देशों के लिए सिद्धान्त बनाते हुए अर्थशास्त्री प्रायः विकसित देशों के उच्च स्तर, वहां की सामाजिक सुरक्षा, उनके निवासियों की कार्यक्षमता, काम करने की इच्छा व कुशलता जैसे घटकों को पिछड़े देशों में भी स्वीकार कर लेता है।

मिर्डल के अनुसार कम विकसित देशों में विकास की समस्याओं के विश्लेषण में इस सरलीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह ध्यान रखना होगा कि विकसित देश के निवासियों का न्यूनतम जीवन स्तर उत्पादक को प्रभावित करता है जिसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।

विकसित देश के अर्थशास्त्रियों द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण उन परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखता जो कम विकसित देशों में विकास की बाधा के कारक हैं। मिर्डल उन अर्थशास्त्रियों की कटु आलोचना करते हैं जो कम विकसित देशों की सैद्धांतिक व व्यावहारिक समस्याओं का विवेचन आर्थिक तथ्यों और सम्बन्धों की सरल संकल्पनाओं के संदर्भ में करते हैं।

वह आर्थिक समस्याओं को मुख्य मानते हैं तथा गैर आर्थिक या अनार्थिक घटकों की उपेक्षा करते हैं। मिर्डल के अनुसार यथार्थ में आर्थिक समस्या नहीं होती, केवल समस्याएं होती हैं तथा ये जटिल होती हैं।

मिर्डल को यह दृढ़ विश्वास था कि आर्थिक समस्याओं को अन्य घटकों एवं कारकों से पृथक् रखकर नहीं बल्कि जनांकिकी समाज एवं राजनीतिक परिप्रेक्ष्य के सम्बन्ध में समझना आवश्यक है। उन्होंने विकास की एक संस्थागत विधि को निर्मित करने का प्रयास किया।

संस्थावाद का दृष्टिकोण मुख्यतः अनुसंधान के लिए प्रेरणा बनता है। यह ऐसा अनुसंधान होता है जो सिद्धान्तों को मात्रात्मक सूक्ष्मता प्रदान कर सकता है तथा उन्हें आधारभूत कसौटी पर तो लेने योग्य बना सकता है।

संस्थावादी अधिक आलोचनात्मक दृष्टि रखने वाला होता है अतः वह लगातार यह देखता है कि परम्परागत तरीकों में विश्वास करने वाले अर्थशास्त्री का मात्रात्मक सूक्ष्मता का दावा निरर्थक होता है।

मिर्डल के अनुसार कम विकसित देशों में आर्थिक विकास के बारे में प्राय: इसका मूल भौतिक विनियोग से जोड़ा जाता है तथा तकनीकी कुशलताओं प्रबंध के अनुभवों की आवश्यकता पर ध्यान नहीं दिया जाता। राष्ट्रीय अथवा औसत आय, बचत, रोजगार व बाजार कीमत तथा तकनीकी गुणांकों के संदर्भ में रोजगार व उत्पादन की शब्दावली में तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं।

दुख तो यह है कि इस बात की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता कि इन देशों में इन शब्दों का क्या अर्थ हो सकता है तथा आकड़ों की जिस जादूगरी से इनका निर्धारण किया जा रहा है। मिर्डल आधुनिकीकरण के आदर्शों को साधन मूल्य सम्बन्धी मान्यता के रूप में प्रयुक्त करते हैं।

उनके अनुसार विकास की समस्याओं का विश्लेषण करने में तर्कसंगत दृष्टिकोण, विकास एवं विकास नियोजन उत्पादन में वृद्धि, रहन-सहन के स्तर में वृद्धि, सामाजिक व आर्थिक समानता, बेहतर व सुधरी हुई संस्थाएं व दृष्टिकोण, राष्ट्रीय सुदृढ़ता, राष्ट्रीय स्वतंत्रता, छोटे से छोटे स्तर पर लोकतंत्र तथा सामाजिक अनुशासन जैसे कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

वे समस्त मूल्य सम्बन्धी मान्यताएँ जिन्हें निष्कर्ष रूप में प्राप्त किया जाता है तार्किक विश्लेषण के अनुसंधान में एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं और अध्ययन के अन्तर्गत ही इन्हें अपनी सूक्ष्म परिभाषा प्राप्त होती है।

मिर्डल का मत था कि वास्तविक परिस्थितियाँ सदैव आदर्श से बहुत दूर होती हैं। अनुसंधान के लिए इन आदर्शों को मूल्य सम्बन्धी मान्यताओं के रूप में प्रस्तावित करने का यह अर्थ होता है कि इन आदर्शों की प्राप्ति की दिशा में परिवर्तन नियोजन का वांछित लक्ष्य है।

कम विकसित देशों में आमूल परिवर्तनकारी सुधारों की आवश्यकता

कम विकसित देशों की विकास समस्याओं में समानता का प्रश्न महत्वपूर्ण है। असमानता का सम्बन्ध समस्त सामाजिक व आर्थिक सम्बन्धों से है। समानता के प्रश्न को इन देशों की विकास समस्याओं एवं नियोजन नीति में महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया गया है।

पश्चिमी अर्थशास्त्री यह मानकर चलते हैं कि आर्थिक विकास व समानतावादी सुधारों में संघर्ष होता है। मिर्डल ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठाया कि क्या आर्थिक समानीकरण एवं आर्थिक प्रगति के मध्य कोई विवाद है।

उनका विचार था कि दक्षिण एशिया में पश्चिम के सापेक्ष कहीं अधिक समानता में होने वाली वृद्धि विकास को मदद ही पहुँचाएगी। पश्चिमी विचारकों का मत था कि सभी देशों में विकास की आरम्भिक अवस्थाओं में आर्थिक वृद्धि व कल्याण के उपायों के मध्य एक विवाद रहा है।

वह यह संकल्पना लेते हैं कि निर्धन देश सामाजिक न्याय के बारे में सोचने तथा समानतावादी सुधारों की कीमत चुकाने की स्थिति में नहीं है। आर्थिक विकास के लिए इन्हें सामाजिक न्याय का बलिदान देना पड़ेगा।

मिर्डल के अनुसार कम विकसित देश आज राष्ट्रीय नियोजन के माध्यम से विकास कार्य .... करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। समानता की स्थापना को नियोजन का मूल लक्ष्य घोषित किया जाता है। संक्षेप में कम विकसित देशों में अधिक समानता तेज आर्थिक विकास की एक अनिवार्य शर्त है।

कम विकसित देशों में असमानता के अनेक रूप हो सकते हैं। मिर्डल मुख्यतः सामाजिक असमानता तथा आर्थिक असमानता के मध्य भेद करते हैं। सामाजिक से तात्पर्य है सामाजिक गतिशीलता का अभाव व स्वतंत्र रूप से प्रतियोगिता करने की सीमित संभावना। आर्थिक असमानता से तात्पर्य है सम्पत्ति व आय में विद्यमान अंतर।

सामाजिक व आर्थिक असमानता एक देश की निर्धनता का मुख्य कारण है। नियोजन की दृष्टि से किसी समाज को निर्धनता से मुक्ति दिलाने के लिए आर्थिक समानता एक पूर्व शर्त होती

है।

दूसरी मुख्य बात यह है कि एक देश जितना अधिक निर्धन होगा वहां आर्थिक असमानता उन लोगों के लिए बहुत अधिक कष्ट उत्पन्न करेगी जो सबसे अधिक निर्बल है। तीसरा सम्बन्ध यह है कि निर्धनता से मुक्ति पाने के लिए देश जिस कठिनाई का अनुभव करता है वह उसका एकमात्र कारण नहीं बल्कि परिणाम हो।

कम विकसित देशों की परिस्थितियों का यथार्थवादी विश्लेषण करते हुए मिर्डल इन देशों में आमूल एवं दूरगामी सुधारों की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। इन दूरगामी सुधारों को कम विकसित देशों द्वारा स्वयं क्रियान्वित करना होगा।

उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में अपनी समस्त नीतियों को इस प्रकार संचालित करना होगा कि वे आर्थिक व सामाजिक असमानताएं दूर हो सकें जो बढ़ती ही जा रही हैं। इसकी आवश्यकता केवल सामाजिक न्याय के लिए ही नहीं वरन् विकास के मार्ग में जो रुकावटें व बाधाएँ हैं उनके निवारण के लिए भी है।

कम विकसित देशों को यह ध्यान भी रखना है कि देश के निर्धन व्यक्तियों की सहायता के जो प्रयास किये जा रहे हैं कहीं उनका स्वरूप इतना विकृत नहीं हो गया जिससे समृद्ध देशों को लाभ मिले। मिर्डल के अनुसार ऐसी विकृति कम विकसित देशों में अधिकांशतः देखी जाती है तथा यह उस प्रक्रिया का अंग बन गई है जो असमानता को बढ़ाने में कारक है।

कम विकसित देशों में मनुष्य एवं भूमि के सम्बन्धों को बुनियादी रूप से परिवर्तित करते हुए कृषि विकास करना मुख्य आवश्यकता है ताकि व्यक्ति को भरपूर प्रयास करने व जिस पूंजी को वह स्वयं जुटा सकता है का विनियोग करने के लिए प्रोत्साहन मिल सके।

मिर्डल के अनुसार भूस्वामित्व एवं काश्तकारी की व्यवस्था में सुधार के बिना कृषि में तकनीकी प्रगति से सामाजिक व आर्थिक अंतराल और अधिक बढ़ेंगे। जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए कम विकसित देशों में परिवार नियोजन कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

इन देशों को अपनी जनसंख्या से निरक्षरता को मिटा देने की महत्वाकांक्षा रखनी चाहिए। स्कूली शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन की आवश्यकता है। अल्पविकसित देशों को अपने कानून बनाने के तरीकों एवं उन्हें क्रियान्वित करने की विधियों में भी सुधार करना चाहिए इन्हें अपने राज्य को एकीकृत व सुदृढ़ बनाना चाहिए।

इन्हें भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए संघर्षरत रहना होगा। मिर्डल का विश्वास था कि अल्प विकसित देशों में चलाए जा रहे सुधारों को प्रबल प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।

इसके पीछे विशेष रूप से उच्च वर्ग के निहित स्वार्थ हैं जिनके हाथ में राष्ट्रीय एवं स्थानीय दोनों स्तरों पर राजनीति का नियमित रूप से नियंत्रण बना रहता है। मिर्डल के अनुसार विकास से सुधारों की संभावना बढ़ती है।

तात्पर्य यह है कि सुधार एक बार प्रारंभ हो जाने पर एक ऐसी समग्र प्रक्रिय उत्पन्न होती है जिसके चक्राकार प्रभाव के द्वारा विकास व सुधार का क्रम चालू हो जाता है। विकसित देशों के अर्थशास्त्रियों के द्वारा कम विकसित देशों की उन परिस्थितियों को छुपाने का प्रयास किया जाता है जो आमूल एवं दूरगामी सुधारों की आवश्यकता को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं।

मिर्डल लिखते हैं कि कठिन व उलझन में डालने वाले तथ्यों पर ध्यान न देना व उनका विश्लेषण करना कम विकसित देशों के उन अप्रबुद्ध लोगों के हाथ में खेलना है जो सुधारों का विरोध करते हैं तथा जो सुधार के उन समस्त प्रयोगों को विकृत बनाते हैं ताकि ऐसे प्रयास उनकी अदूरदर्शिता पर आधारित हितों के अनुरूप हो जाएँ।

कम विकसित देशों में कृषि नीति पर विचार करते हुए अर्थशास्त्री घटिया प्रौद्योगिक आशावादिता के शिकार बन गए हैं। उन्होंने भूस्वामित्व एवं काश्तकरी व्यवस्था के अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार नहीं किया व कृषि की उन्नति में गाँवों के सामान्य जनों के सहयोग के महत्व की उपेक्षा की।

मिर्डल के अनुसार अभी तक किसी भी अर्थशास्त्री ने विकास के लिए प्रौढ़ शिक्षा के अभियान के द्वारा निरक्षरता को समाप्त करने की व्यावहारिकता के महत्व को नहीं देखा। मानव संसाधन विनियोग पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया।

शिक्षा प्रणाली में अध्ययन व अध्यापन की दिशा, विषय वस्तु व भावना पर ध्यान नहीं दिया गया। शिक्षा प्रणाली की योजना ही ऐसी है कि यह विकास के लिए हानिकारक हो रही है। मिर्डल का निष्कर्ष था कि पूर्वाग्रहों से मुक्त व गहन अनुसंधान के प्रयास का स्वयं कम विकसित देशों की नीति निर्धारण पर प्रभाव पड़ेगा।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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